NEWS FROM RED CORNER
Friday, June 4, 2010
मुंबई, प्रेट्र : विख्यात लेखिका व सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती राय ने कहा है कि बेशक उन्हें जेल में डाल दिया जाए, वह माओवादियों के सशस्त्र संघर्ष को अपना समर्थन देती रहेंगी। उन्होंने कहा कि वह हिंसा का समर्थन नहीं करती हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गांधीवादी रास्ते से सफलता हासिल नहीं हो सकेगी। वह बुधवार रात कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स द्वारा आयोजित द वॉर आन पीपुल विषय पर व्याख्यान दे रही थीं। उन्होंने कहा, मैं रेखा के इस तरफ हूं। मुझे कोई परवाह नहीं है.. मुझे पकड़ो, मुझे जेल में डाल दो। नक्सली आंदोलन सशस्त्र संघर्ष है और कुछ नहीं। मैं हिंसा का समर्थन नहीं करती। लेकिन मैं राजनीतिक विश्लेषण पर आधारित ज्यादती के खिलाफ हूं। अरुंधती ने कहा, विरोध के गांधीवादी तरीके को दर्शकों की जरूरत होती है जो यहां नहीं हैं। इस तरह का संघर्ष का रास्ता चुनने से पहले लोगों ने लंबी बहस की है। नक्सली हिंसा को खनिज, पानी और वन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण के लिए आदिवासियों और कारपोरेट घरानों के बीच होने वाली लड़ाई करार देते हुए अरुंधती ने कहा कहा कि 99 प्रतिशत माओवादी आदिवासी हैं लेकिन 99 प्रतिशत आदिवासी माओवादी नहीं हैं। जिसे सरकार माओवादी कॉरिडोर कहती है, दरअसल वह एमओयू (मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग) है क्योंकि हर नदी, हर पहाड़ का एमओयू साइन हो चुका है। बड़े कारपोरेट इसका लाभ ले रहे हैं। इनसे वे लड़ रहे हैं जो निहायत गरीब हैं। यदि हम इनके साथ होंगे तो ये जरूर जीतेंगे। लौह अयस्क की खुदाई के पीछे का गणित बताते हुए अरुंधती ने लोकायुक्त की रिपोर्ट का हवाला दिया कि सरकार को प्रति टन खुदाई का 24 रुपये और खनन कंपनी को 5,000 रुपये मिलते हैं। उन्होंने कहा कि यहां सर्वाधिक निर्धन, कुपोषित लोग उन कारपोरेट घरानों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं जिनका दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संस्थान समर्थन करते हैं। इन लोगों ने काफी हद तक इन घरानों को रोकने में सफलता पाई है। अगर हम उनमें शामिल हो जाते हैं तो वह अपनी लड़ाई जीत सकते हैं। अरुंधती ने अपनी उस कथित टिप्पणी को भी स्पष्ट किया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर माओवादियों को सशस्त्र गांधीवादी कहा था। उन्होंने कहा, मैंने उन्हें शस्त्रधारी गांधीवादी कभी नहीं कहा। मेरा कहने का मतलब था कि खुद को गांधीवादी बताने वालों की तुलना में रहन-सहन और उपभोग की दृष्टि से वे अधिक गांधीवादी हैं। दंतेवाड़ा हमले में अरुंधती ने आदिवासियों की की सराहना की थी। उन्होंने कथित पारदर्शिता के अभाव को लेकर मीडिया की भी आलोचना की और मांग की कि मीडिया घरानों को अपने राजस्व के सभी स्रोतों का खुलासा कर
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